पहले से 20 भूस्खलन जोन, अब नए क्षेत्रों ने बढ़ाई चुनौती – राष्ट्रीय राजमार्गों पर 203 चिह्नित
देहरादून । उत्तराखंड में इस मानसून ने आपदा की चुनौतियां और बढ़ा दी हैं। राज्य के राष्ट्रीय राजमार्गों पर अब तक 203 भूस्खलन जोन चिह्नित हो चुके हैं। इनमें से कई पहले से सक्रिय थे, लेकिन इस बार यमुनोत्री मार्ग के सिलाई बैंड, नारदचट्टी, फूलचट्टी और बदरीनाथ मार्ग के फरासू व गुलर घाटी जैसे नए क्षेत्रों ने भी खतरा बढ़ा दिया है।
प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई 3594 किलोमीटर है। आवागमन सुगम बनाने के लिए सड़कों को चौड़ा किया गया, लेकिन भूस्खलन, भूधंसाव और भूकटाव ने स्थिति को और कठिन बना दिया है। मुख्य अभियंता मुकेश परमार के अनुसार 127 ट्रीटमेंट कार्यों की डीपीआर स्वीकृत हो चुकी है और 20 स्थानों पर उपचार कार्य जारी है। अनुमान है कि आपदा से क्षतिग्रस्त राष्ट्रीय राजमार्गों को पूर्व स्थिति में लाने में 1000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च आएगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि अनियंत्रित ब्लास्टिंग और स्लोप प्रोटेक्शन की अनदेखी भूस्खलन का मुख्य कारण है। जीएसआई के पूर्व उप महानिदेशक त्रिभुवन सिंह पांगती और वाडिया संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डीपी डोभाल का कहना है कि सड़क निर्माण के दौरान पहाड़ काटने के बाद उपचारात्मक कार्य अनिवार्य होना चाहिए।
टनकपुर-पिथौरागढ़ मार्ग पर अकेले 60 भूस्खलन जोन चिह्नित हैं। इनमें से केवल 27 का उपचार पूरा हुआ है, जबकि इन कार्यों पर 318 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। बरसात के समय रानीबाग-भीमताल-अल्मोड़ा मार्ग और नैनीताल के बलियानाला क्षेत्र में भी गंभीर समस्या बनी रही।
ऑलवेदर रोड परियोजना ने जहां सुविधाएं दीं, वहीं कई क्षेत्रों में भूस्खलन की नई चुनौतियां भी खड़ी कर दीं। चमोली जिले में कई भवन खतरे की जद में आ गए हैं। गौचर के पास कमेड़ा भूस्खलन क्षेत्र का स्थायी समाधान तीन साल में भी नहीं मिल पाया, अब कर्णप्रयाग के पास उमट्टा क्षेत्र भी नया भूस्खलन जोन बनकर सामने आया है।
Post Comment